Shopping cart

Subtotal: $4398.00

View cart Checkout

Blog Image
By - Sapna Sep 08, 2025 Comments (3) मध्य प्रदेश

सेंट्रल इंडिया में पहली बार लगाया दुनिया का सबसे छोटा कैप्सूल पेसमेकर, 15 साल तक करेगा काम

भोपाल, 8 सितंबर 2025:
सेंट्रल इंडिया में पहली बार दुनिया का सबसे छोटा और आधुनिक पेसमेकर – माइक्रा वीआर 2 – भोपाल में एक निजी अस्पताल में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया। कैप्सूल जैसा दिखने वाला यह पेसमेकर 65 वर्षीय मरीज के दिल में नसों के रास्ते ट्यूब डालकर फिट किया गया। मरीज की धड़कनें इतनी कम हो गई थीं कि दिमाग तक पर्याप्त खून नहीं पहुंच पा रहा था और वह बार-बार बेहोश हो जाता था। ऑपरेशन के बाद अब वह स्वस्थ है।

कैप्सूल जितना छोटा, लेकिन बड़ी राहत

प्रोसीजर करने वाले डॉ. किसलय श्रीवास्तव ने बताया कि मरीज देवेंद्र सिंह (परिवर्तित नाम) के दिल में माइक्रा वीआर 2 पेसमेकर लगाया गया है। इसका आकार केवल 25 मिमी × 6 मिमी है और इसका वजन 1.75 ग्राम है। टाइटेनियम से बने इस डिवाइस को सीधे दिल के अंदर कैथेटर तकनीक से फिट किया गया। इसमें कोई तार नहीं है और यह त्वचा के नीचे दिखाई भी नहीं देता।

डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि यह पेसमेकर उन मरीजों के लिए सबसे उपयुक्त है जिन्हें संक्रमण, जटिलताओं या बार-बार सर्जरी की आवश्यकता का डर रहता है। इसका जीवनकाल 15 साल या उससे अधिक है और पारंपरिक पेसमेकर की तुलना में इसे लगाने में कम समय लगता है तथा रिकवरी भी जल्दी होती है।

सुरक्षा, आराम और आधुनिक तकनीक का मेल

माइक्रा वीआर 2 में कोई वायर नहीं होने के कारण संक्रमण का खतरा बेहद कम होता है। यह पूरी तरह से वायरलेस है और कैथेटर तकनीक से सीधे दिल में फिट कर दिया जाता है। मरीज को बड़े ऑपरेशन से गुजरना नहीं पड़ता और बाहरी चीरा भी नहीं लगाया जाता। इसका कॉम्पैक्ट आकार उन मरीजों के लिए भी विशेष रूप से लाभकारी है जो कॉस्मेटिक कारणों से पेसमेकर को त्वचा के नीचे दिखाना नहीं चाहते।

महंगा लेकिन सुरक्षित विकल्प

इस पेसमेकर की कीमत 12 से 15 लाख रुपये के बीच बताई जा रही है। पहले बड़े पेसमेकर लगाए जाते थे जो अपेक्षाकृत सस्ते तो होते थे, लेकिन उनकी बैटरी जल्दी बदलनी पड़ती थी और तारों में खराबी या संक्रमण की संभावना अधिक रहती थी। माइक्रा वीआर 2 की आधुनिक तकनीक मरीजों के लिए अधिक सुरक्षित और आरामदायक विकल्प है।

किसके लिए उपयोगी?

यह तकनीक विशेष रूप से उन मरीजों के लिए फायदेमंद मानी जा रही है:

  • बुजुर्ग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है

  • ऐसे मरीज जिन्हें बार-बार संक्रमण का खतरा रहता है

  • युवा मरीज जो पेसमेकर को दिखाना नहीं चाहते

  • जिन्हें बार-बार सर्जरी कराना मुश्किल होता है

डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि यह तकनीक न केवल मरीज की जान बचाने में मददगार है, बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाती है। सेंट्रल इंडिया में पहली बार इस तकनीक के उपयोग ने स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post