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By - Sapna Jul 25, 2025 Comments (3) उत्तर प्रदेश

वरिष्ठ व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी का निधन, पत्नी के वियोग में टूट गए थे साहित्यकार

लखनऊ: हिंदी साहित्य जगत के जाने-माने व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी का गुरुवार देर रात निधन हो गया। वे 82 वर्ष के थे। यह घटना साहित्य जगत के लिए दोहरी पीड़ा लेकर आई है क्योंकि महज छह दिन पहले, 18 जुलाई को उनकी पत्नी और पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी निशा चतुर्वेदी का निधन हुआ था। पत्नी के वियोग में टूटे गोपाल चतुर्वेदी यह आघात सहन नहीं कर सके।

व्यंग्य लेखन में रचा इतिहास

15 अगस्त 1942 को लखनऊ में जन्मे गोपाल चतुर्वेदी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता से की थी, लेकिन उन्हें व्यापक पहचान हिंदी व्यंग्य साहित्य में अपने अनूठे योगदान के कारण मिली।
उनकी रचनाओं में सामाजिक विडंबनाओं की तीखी झलक, व्यवस्था पर करारा व्यंग्य और मानवीय संवेदनाओं की गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

चर्चित कृतियाँ और लेखन कार्य

गद्य और पद्य दोनों विधाओं में सिद्धहस्त गोपाल चतुर्वेदी के लोकप्रिय कविता संग्रह हैं:

  • कुछ तो हो

  • धूप की तलाश

वहीं, उनके चर्चित व्यंग्य संग्रहों में शामिल हैं:

  • धाँधलेश्वर

  • अफ़सर की मौत

  • दुम की वापसी

  • राम झरोखे बैठ के

  • फ़ाइल पढ़ी

  • आदमी और गिद्ध

  • कुरसीपुर का कबीर

  • फार्म हाउस के लोग

  • सत्तापुर के नकटे

इन रचनाओं ने न सिर्फ पाठकों को गुदगुदाया, बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर किया।

सम्मान और पुरस्कार

गोपाल चतुर्वेदी के साहित्यिक योगदान को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर खूब सराहा गया।

  • वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें ‘यश भारती सम्मान’ से नवाजा।

  • केन्द्रीय हिंदी संस्थान ने उन्हें ‘सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार’ प्रदान किया।

  • वर्ष 2001 में उन्हें हिंदी भवन का ‘व्यंग्य श्री’ सम्मान भी प्राप्त हुआ।

व्यक्तिगत क्षति, साहित्यिक क्षति में बदली

निशा चतुर्वेदी के निधन के बाद गोपाल चतुर्वेदी गहरे अवसाद में चले गए थे। उनके करीबी बताते हैं कि वे पत्नी के निधन से बेहद टूट चुके थे। यह दुःख उनके स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल गया। अंततः 24 जुलाई की रात को उन्होंने अंतिम सांस ली।


साहित्यिक जगत में शोक की लहर

गोपाल चतुर्वेदी के निधन से हिंदी साहित्य एक ऐसी आवाज़ से वंचित हो गया है, जो व्यंग्य के माध्यम से समाज को आईना दिखाने में सक्षम थी। उनकी रचनाएँ आने वाले समय में भी लोगों को हँसाएंगी, चौंकाएंगी और सोचने पर मजबूर करेंगी।

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