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By - Sapna Sep 10, 2025 Comments (3) राज्य / बिहार

जब नीतीश कुमार 7 दिनों के लिए बने बिहार के मुख्यमंत्री, साल 2000 का विधानसभा चुनाव रहा ऐतिहासिक मोड़

पटना, 10 सितंबर 2025 – बिहार की राजनीति में वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में याद किया जाता है। इस चुनाव ने न केवल सत्ता समीकरण बदले, बल्कि बिहार की राजनीति को नई दिशा भी दी। नीतीश कुमार भले ही केवल सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन उनके नेतृत्व और राजनीतिक दृष्टिकोण ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय चेहरा बना दिया।

सात दिनों की सरकार और बहुमत की जंग

विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु परिणाम आया। एनडीए को 151 सीटें मिलीं जबकि राजद के पास 159 विधायकों का समर्थन था। बहुमत का जादुई आंकड़ा 163 था, जिससे दोनों पक्ष सरकार बनाने में असफल रहे। नीतीश कुमार ने समता पार्टी के नेता के रूप में 3 मार्च 2000 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत साबित न कर पाने के कारण 10 मार्च को इस्तीफा दे दिया। उन्होंने जोड़-तोड़ और विधायकों की खरीद-फरोख्त से इंकार करते हुए सत्ता में बने रहने से मना कर दिया।


राजद की वापसी और राबड़ी देवी का नेतृत्व

नीतीश कुमार की सरकार गिरते ही लालू प्रसाद सक्रिय हुए और राजद ने अन्य दलों के समर्थन से सरकार बनाई। राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिन्होंने अगले पाँच वर्षों तक बिहार की सत्ता संभाली। इस दौरान भाजपा के सुशील कुमार मोदी विपक्ष के नेता बने रहे।


समता पार्टी और जदयू का विलय, नई राजनीतिक ताकत

साल 2000 के बाद समता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का विलय हुआ। इसके बाद जदयू ने बिहार की राजनीति में मजबूती से अपनी पहचान बनाई। नीतीश कुमार का चेहरा प्रदेश में लोकप्रिय हुआ और उनकी स्वीकार्यता बढ़ती गई।


बिहार-झारखंड विभाजन – राजनीतिक मजबूरी का परिणाम

लालू प्रसाद बंटवारे के खिलाफ थे, लेकिन अंततः 15 नवंबर 2000 को बिहार और झारखंड दो अलग राज्यों के रूप में अस्तित्व में आ गए। झारखंड में भाजपा की सरकार बनी और बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने। बिहार में राबड़ी देवी की सरकार सहयोगी दलों के साथ 2005 तक चलती रही। लालू प्रसाद ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की नाराजगी से बचने के लिए विभाजन का समर्थन किया, क्योंकि उन्हें विरोध का सामना करना पड़ सकता था।


राजनीतिक प्रभाव

यह चुनाव और इसके बाद की घटनाएँ बिहार की राजनीति में स्थायी प्रभाव छोड़ गईं। नीतीश कुमार की ईमानदार राजनीति और सत्ता में बने रहने से इनकार ने उन्हें एक सशक्त नेता के रूप में स्थापित किया। वहीं, बिहार-झारखंड विभाजन ने क्षेत्रीय राजनीति को नया स्वरूप दिया और राज्य की प्रशासनिक संरचना बदल दी।

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