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By - News Desk Aug 07, 2025 Comments (3) देश विदेश

तमिलनाडु में फिर उठा विधेयकों पर टकराव का मुद्दा, राष्ट्रपति तक पहुंचा मामला, SC से मांगी गई राय

चेन्नई: तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विधायी मामलों को लेकर एक बार फिर से टकराव की स्थिति बन गई है। यह विवाद ‘कलैग्नार शताब्दी विश्वविद्यालय विधेयक’ को लेकर सामने आया है, जिसे राज्यपाल आर. एन. रवि ने मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति के पास आरक्षित कर दिया है। इससे पहले राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है, जहां से स्पष्ट निर्देश जारी किए गए थे।

क्या है पूरा मामला?

अप्रैल 2025 में तमिलनाडु विधानसभा से पारित ‘कलैग्नार शताब्दी यूनिवर्सिटी बिल’ के अनुसार, राज्य में एक नई यूनिवर्सिटी की स्थापना होनी है, जिसका चांसलर राज्य का मुख्यमंत्री होगा। मौजूदा नियमों के अनुसार, राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर राज्यपाल होते हैं, जिसे बदलने की मंशा डीएमके सरकार ने इस बिल के जरिए जताई।

राज्यपाल आर. एन. रवि ने इस विधेयक को मंजूरी देने के बजाय इसे राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेज दिया है, जिससे एक बार फिर संवैधानिक बहस छिड़ गई है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप

इससे पहले, राज्यपालों द्वारा विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखने को लेकर तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि राज्यपालों को विधेयकों पर अधिकतम तीन महीने में निर्णय लेना अनिवार्य है।

अब डीएमके का कहना है कि राज्यपाल ने बिल को राष्ट्रपति के पास भेजकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की है।

राज्यसभा सांसद और तमिलनाडु सरकार के वकील पी. विल्सन ने कहा:

"राज्यपाल का बिल को मंजूरी न देना न केवल सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है, बल्कि यह उनके संवैधानिक कर्तव्यों की अनदेखी भी है। राज्यपाल को कैबिनेट और विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देनी ही चाहिए।"

राष्ट्रपति भवन ने भी मांगी राय

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए राष्ट्रपति भवन ने स्वयं सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है, यह सवाल उठाते हुए कि अदालत कैसे राष्ट्रपति या राज्यपाल को किसी समयसीमा में आदेश दे सकती है। यह घटनाक्रम संघीय ढांचे और संविधान के अनुच्छेदों की व्याख्या से जुड़ा हुआ है।

राज्यपाल बनाम सरकार: लगातार टकराव

तमिलनाडु में राज्यपाल और डीएमके सरकार के बीच यह कोई पहला विवाद नहीं है। इससे पहले भी कई विधेयकों को राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक लटकाया गया था, जिससे सरकार ने केंद्र पर संवैधानिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप का आरोप लगाया था।

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